रोहतास पत्रिका/नई दिल्ली:
वक़्त के साथ साथ इंसान भी बदलना चाहिए, ये कहावत तो आपने सुनी होगी.ऐसे ही हमारे नेता जी और राजनीति भी बदल रही है. हम बदलते वक़्त और नए हालात में बदली राजनीति से रूबरू करवाएँगे. आज बात वर्चुअल रैली के बारे में करेंगे। इससे होने वाले नफा नुकसान पर भी नजर डालेंगे, कि आखिर क्यों सभी विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं। साथ ही ये भी जानेंगे कि इस बार ऐसी रैली की जरूरत क्यों पड़ी? और इसके लिए तकनीक का कैसे इस्तेमाल होता है।
वर्चुअल रैली का यूज करने वाले हम पहले लोग नहीं है हमसे पहले USA भी कर चुका है। पिछली बार हुए राष्ट्रपति चुनाव में। अब अगर आपके दिमाग में वर्चुअल रैली के नाम पर सोशल मीडिया जैसे फेसबुक ट्विटर वगैरह-वगैरह का ख्याल आ रहा है कि इससे वर्चुअल रैली की जाती है तो ये ख्याल अपने मन से निकाल दीजिए। क्योंकि ये फेसबुक लाइव, यूट्यूब और ज़ूम जैसे वीडियो कांफ्रेंसिंग ऐप से बहुत दूर की चीज है। तो फिर ये आखिर है क्या? उसके तकनीक के बारे में आपको बताएं उससे पहले आप ये जान लीजिए कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी।
आबादी के लिहाज़ से सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में चुनावी अभियान की बात हो तो रैली अहम हो जाती है. क्योंकि रैली के ज़रिये बड़े जनसमूह के दिलो-दिमाग को प्रभावित किया जा सकता है. उनतक अपनी बातों को पहुँचाया जा सकता है, लेकिन, Coronavirus के दौर में चूंकि भीड़ जुटने से संक्रमण का खतरा है इसलिए अब राजनीतिक पार्टियां डिजिटल या वर्चुअल रैली (Virtual Rally) का रुख कर रही हैं.
अगर हम वर्चुअल रैली की तकनीक की बात करें तो इसमें रियल टाइम इवेंट के तहत न केवल आयोजन किया जा रहा है बल्कि कुछ ब्रांड और कंपनियां प्लानिंग और टाइमलाइन ट्रैकिंग जैसी सेवाएं भी दे रही हैं. इसमें वीडियो के साथ ही आप ग्राफिक, पोल अन्य जानकारियों का शुमार कर सकते हैं. जिससे कि आपकी बात बेहतर तरीके से जनता के बीच पहुंच सके। अब जब तकनीक नया है तो इस डिजिटल युग में इससे फायदा यो होगा ही लेकिन एक रैली करने में पार्टी जो पैसा खर्च करती थी उससे कितने लोगों को रोजगार मिल जाता था, लेकिन अब उन मजदूरों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। साथ ही छोटी पार्टियों के पास उतने कार्यकर्ता भी नही है जिसके बदौलत वो इसे अंजाम दे।