रोहतास पत्रिका/नई दिल्ली:
हर साल 23 दिसंबर को देश में ‘राष्ट्रीय किसान दिवस’ मनाया जाता है, लेकिन इस बार ये किसान आंदोलन की वजह से मुख्य केंद्र बिंदु बना हुआ है। बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर पूरे देश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। एक कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत की बहुसंख्यक आबादी खेती से जुड़ी है। चलिए इस बहुसंख्यक आबादी से जुड़े ‘किसान दिवस’ के इतिहास पर नजर डालते हैं और आज के परिपेक्ष्य में समझने की कोशिश करते हैं।
किसान दिवस मनाए जाने का प्रमुख कारण देश में किसानों की प्राथमिकता को महत्व देना एवं उनके हित में चलाई गई योजनाओं के बारे में किसानों को परिचित कराना है। किसान दिवस पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर मनाया जाता है। 23 दिसंबर 1902 को जन्मे चौधरी चरण ने किसानों के हित में अनेक कदम उठाए थे। बता दें इनका कार्यकाल भारत के पांचवे पीएम के रूप में जुलाई 1979 से जनवरी 1980 तक रहा था। इनके प्रधानमंत्री रहते ही नई दिल्ली में 23 दिसंबर 1978 को ‘किसान ट्रस्ट’ की स्थापना हुई थी।
ऐसे बने थे राजनीति के ‘चौधरी’
चौधरी चरण सिंह पहली बार 1937 में विधायक चुने गए थे। जिन्हें 1977 तक छपरौली-बागपत से विधायक बने रहने का मौका मिला। 1967 में कांग्रेस छोड़कर चौधरी चरण ने अपनी नई पार्टी बना ली थी। ‘भारतीय क्रांति दल’ के नाम से बनी इस पार्टी को उस समय के नेता राममनोहर लोहिया का साथ मिला। किसानों से उनका लगाव और बदलते राजनीतिक समीकरण के वजह से उन्हें पहली बार यूपी में गैर कांग्रेसी पार्टी की सरकार का अगुवाई करने का मौका मिला, और वो यूपी के मुख्यमंत्री बन गए। 1967 से 1970 तक सीएम के पद पर उन्होंने कार्य किया। उन्होंने ही अपने कार्यकाल के दौरान जमींदारी प्रथा को खत्म कर किसानों को बड़ी राहत पहुँचाई थी। खाद पर से सेल्स टैक्स भी हटा लिया था।
राजनीतिक व्यक्तित्व के जयंती पर मनाए जा रहे किसान दिवस में आज देश का किसान खुद राजनीति के दिग्गजों के बुने जाल में फंसता जा रहा है। देश के बहुसंख्यक आबादी का एक वर्ग इन ठंडी हवाओं को बर्दाश्त कर दिल्ली से सटे बॉर्डर पर अपनी मांग को लेकर अड़ा हुआ है और सरकार इसके फायदे गिना रही है।