रोहतास पत्रिका/नई दिल्ली:
भारत की गिरती अर्थव्यवस्था से रोजगार के अवसर भी कम होते जा रहे हैं। देश में पहले से हीं बेरोजगारी दर 45 साल के उच्चतम स्तर 6।1% पर पहुंच चुका है। हाल ही में आई एसबीआई रिसर्च की इकोरिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल नई नौकरियां 16 लाख कम पैदा होंगी। अब देखना ये होगा कि क्या सरकार बजट सत्र में इससे निपटने के लिए कितनी नई योजनाओं की घोषणा करती है।
क्या कहा गया है रिपोर्ट में
पिछले फाइनेंशियल ईयर, यानी 2018-19 के मुकाबले इस साल, यानी 2019-20 में रोजगार के करीब 16 लाख कम नौकरियां पैदा होंगी। पिछले साल एम्पलॉइज प्रोविडेंट फण्ड आर्गनाइजेशन (ईपीएफओ) की आई एक रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक कुल 89।7 लाख नए रोजगार के अवसर पैदा हुए थे। यानी कि इस साल 73।9 लाख ही नौकरियां पैदा होंगी। ईपीएफओ के आंकड़े में मुख्य रूप से कम वेतन वाली नौकरियां शामिल होती हैं जिनमें वेतन की अधिकत सीमा 15,000 रुपये मासिक है। एसबीआई की रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था में लगातार आ रही गिरावट को भी कारण बताया गया है। इसके साथ ही असम, बिहार, राजस्थान, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में पैसे भेजने (रेमिटेंस) में कमी आ रही है। इससे पता चलता है कि कॉन्ट्रैक्ट वाले काम लगातार घट रहे हैं। उद्योग जगत में छाई सुस्ती की वजह से भी रोजगार के कम हो रहे हैं।
दैनिक भास्कर में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक एसबीआई की इकोरिपोर्ट पर पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने कहा कि, “अगर इसी तरह बेरोजगारी बढ़ती रही और वेतन कम होती रही, तो डर है कि देश के युवाओं और छात्रों का गुस्सा भड़क उठे। देश पहले ही सीएए और एनपीआर के विरोध में है।उसमें महंगाई बढ़ना और अर्थव्यवस्था कमजोर होना देश के लिए और भी बड़ा खतरा है।”
क्या बजट 20-20 से आसान होंगी राहें?
एक तरफ जहां भारत सरकार ने इंडियन इकोनॉमी को 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की बनाने का लक्ष्य रखा है। वहीं दूसरे तरफ भारत की गिरती अर्थव्यवस्था को संभालना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का ये पहला पूर्ण बजट है जो ऐसे समय में पेश होने जा रहा है जिस समय देश की इकोनॉमी सुस्त पड़ी हुई है और बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण किए हुए है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब पहली बार पूर्ण बजट पेश करेंगी तो उनके सामने इन दोनों समस्याओं से निपटने की चुनौती रहेगी। पिछले छह साल से इंडियन इकोनॉमी लगातार लुढ़कती जा रही है। यूनाइटेड नेशंस ने 2019-20 में भारत की जीडीपी को 5।7% रहने का अनुमान लगाया है।
बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू के मुताबिक सीनियर आर्थिक पत्रकार सुषमा रामचंद्रन कहती हैं, ”अगर महंगाई की बात करें तो दिसंबर में बढ़ी महंगाई के पीछे खाने के सामान की बढ़ी कीमतें मुख्य कारण हैं। हाल के दिनों में प्याज, लहसुन और आलू के दाम काफी बढ़े हैं। एसबीआई ने खुद कहा है कि अगर इन तीन चीजों को हटा दें तो महंगाई की दर कम हो जाती है।”
वहीं रेटिंग एजेंसी केयर के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस कहते हैं कि अगर सरकार आने वाले बजट 2020 में अर्थव्यवस्था के सुधार की कोशिश करे, और निवेशकों के निवेश के लिए कदम उठाए साथ ही सरकार बुनियादी ढांचे जैसे कोयला, इस्पात, बिजली में निवेश करे तब नौकरियां पैदा होने की सम्भावनाएं ज्यादा होंगी। अगर सरकार दो से ढाई लाख करोड़ सड़क, रेलवे या शहरी विकास में ख़र्च करती है तो इससे जुड़े उद्योग जैसे सीमेंट, स्टील और मशीनरी में लाभ होगा और उससे मांग और विकास बढ़ेगी। अगर ये नहीं हुआ तो विकास दर का पांच से छह प्रतिशत तक पहुंचना मुश्किल है।